Jinn Jinaat Ki Duniya –
Jinn Jinnat Ki Kahani – Bhoot Pret Ki Kahani
मेरा नाम अहमद हैं. मैं एक मस्जिद मे रहता हूँ. जब मैं छोटा
बच्चा था तब से ही मस्जिद के पास बने हुए एक छोटे से कमरे मे रहता चला आ रहा हूँ.
अब भी मैं मस्जिद के पास बने हुए छोटे से कमरे मे रह रहा हूँ. मुझे यहा पर रहते
हुए बहुत दिन बीत गए हैं. अच्छा भी लगता हैं मस्जिद का शांत माहौल मुझे बहुत पसंद
हैं. किसी से कोई लफरा नहीं.
जो जी मे आया किया और एकांत मे रहा. मुझे ज्यादा शोर
शराबा पसंद नहीं हैं. इसलिए मैं यहा रहना पसंद करता हूँ.
मस्जिद मोहल्ले मे हैं.
यहा पंचो वक़्त का नमाज होता हैं. मोहल्ले के लोग नमाज़ पढ़ने के लिए यहा आते हैं.
भूत प्रेत होते हैं या नहीं ये मुझे पता नहीं था. पर मैंने एक बार जिन्न जिन्नात
जरूर देखा हैं. वो भी बहुत करीब से. मुझे तो अब भी यकीन नहीं आ रहा हैं.
जिसे
मैंने देखा हैं वो सच मे कोई जिन्न
जिन्नात था या कुछ और. कभी कभी आँखों पर विश्वश कर पाना भी मुसकिल होता हैं. जो
देखा वो सच मे था या कुछ और था. पर जो भी था मैंने जिन्न जिन्नात को अपने इन आँखों
से देखा हैं. मैं अब भी वो दिन भूल नहीं पता हूँ जब मैंने जिन्न जिन्नात को देखा
था. बात बहुत ज्यादा पुरानी नहीं हैं.
बस यही दो साल ही बीते होंगे. जब मैंने
जिन्न जिन्नात देखा था. जिन्न जिन्नात की दुनिया भी बहुत अजीब होती हैं. मौलाना
साहब कहते हैं की जिन्न जिन्नात भी इसी दुनिया मे हमारे साथ रहते हैं. वो हमारे आस
पास ही रहते हैं. हम उन्हे नहीं देख पाते हैं. पर उनकी नजर हम पर सदा लगी रहती
हैं. वो हमे बराबर देखते रहते हैं. जिन्न जिन्नात भी इसी दुनिया मे रह कर अपना
ज़िंदगी बिताते हैं. पर वो हम से ज्यादा ताकतवर होते हैं.
उन्हे अपने बस मे कर पाना
बहुत मुसकिल हैं. जिन्न जिन्नात की दुनिया हकीकत मे बहुत अजीब होती हैं. आज भी जब
मैं उस दिन के बारे मे सोचता हूँ तो मेरा रोम रोम खड़ा हो जाता हैं. डर और घबराहट
से पसीना आने लगता हैं. एक बार की बात हैं मैं अपने कमरे मे सोया हुआ था. रात का
समय था. मैं मस्जिद के पास बने हुए अपने छोटे से कमरे मे सोया हुआ था. तभी मुझे ऐसा
लगा की मस्जिद मे बर्तनों के टकराने की आवाज आ रही हैं.
ऐसा लगा की कोई कुआ से
पानी निकाल रहा हैं. साफ तरह से बाल्टी का आवाज सुना जा सकता था. जो कुआ के अंदर
जाता और ऐसा लगता की कोई पानी निकाल कर लोटा मे रख रहा हैं. मैं सोचा की लगता हैं
अब दिन निकलने वाला हैं. सुबह का अजान मुझे ही देना पड़ता हैं. जब भी मस्जिद मे
अज़ान का समय होता तो मेरा काम रहता की मुझे अज़ान दे कर लोगो को बताना पड़ता हैं, की अब
नमाज का समय हो चुका हैं. पर उस रात मुझे ऐसा लगा की सुबह का अज़ान किसी और ने दे
दिया होगा. तभी लोग मस्जिद मे आ कर वज़ू बना रहे हैं. मैं समय नहीं देखा और झट से
उठा. तैयार हो कर मस्जिद की तरफ चला गया.
मैं सोच रहा था की आज बहुत देर हो गई
हैं. ऐसा न हो की नमाज शुरू हो जाए. तुरंत कुआ के पास पाहुचा और वज़ू कर के अंदर
चला गया. पर जब मैं मस्जिद के अंदर जा ही रहा था तो देखा की बाहर मे बहुत बड़े बड़े
खड़ाऊ रखे हुए हैं. कोई चप्पल था ही नहीं सभी काठ के बने हुए खड़ाऊ थे. वो भी बहुत
बड़े बड़े. ऐसा खड़ाऊ आज तक मैंने किसी का नहीं देखा था. खड़ाऊ पहनने का जमाना तो कब
का चला गया. पर उस रात मैंने मस्जिद के बाहर खड़ाऊ देखा.
मुझे ज्यल्दीबाजी थी.
इसलिए मैं मस्जिद के अंदर चला गया. पर अंदर बहुत भीड़ थी. वो भी सुबह के समय.
मस्जिद मे इतना भीड़ तो सिर्फ रमजान के समय ही होता हैं. जब बहुत से लोग नमाज पढ़ने
आते हैं. नहीं तो बाकी के दिनो मे तो सिर्फ कुछ ही लोग नमाज पढ़ने आते हैं. पूरा
मस्जिद खाली रहता हैं. सुबह सुबह इतना भीड पहले कभी नहीं देखा. मैं ज्यल्दीबाजी मे
था. इसलिए अंदर जा कर सब से अंतिम पंक्ति मे खड़ा हो गया.
पर मैंने देखा की वहाँ पर
जीतने भी लोग खड़े थे. सभी का लंबाई बहुत ही ज्यादा था. इतना ज्यादा की मस्जिद का
छत उनके सर से ज्यादा दूर नहीं था. बिलकुल सफ़ेद रंग का कपड़ा पहने हुए. जो की
अंधेरा होने के बाद भी चमक रहा था. मुझे कुछ समझ मे नहीं आ रहा था. मैं एक आदमी के
पास खड़ा था. वो भी बहुत लंबा था. नमाज शुरू हो चुका था और सभी नमाज पढ़ रहे थे. तभी
मुझे लगा की वहाँ का एक आदमी मुझे देख रहा हैं.
मैं बहुत डर चुका था क्यू की मैं
जान चुका था की यहा पर जीतने भी आदमी मौजूद हैं. वो कोई आम इंसान नहीं नहीं हैं. बल्कि
कुछ और ही हैं. वो मेरा कुछ बिगार पाते
मैं दौड़ता हुआ वहाँ से भागा और अपने कमरे के अंदर जा कर दरवाजा ज़ोर से बंद
कर लिया. डर और घबराहट मेरे ऊपर हावी हो
चुका था. अब किया तो क्या किया जाए कुछ समझ मे नहीं आ रहा था. अपने घर को चरो तरफ
से बंद कर के मैं अंदर था. जब भी कमरे के बाहर से खटखटाने की आवाज आती. तो मेरे
पूरा शरीर शिहर जाता. डर और घबराहट मेरे ऊपर हवी हो चुका था.
रात भर मैं घर के
अंदर दुबक कर रहा. उस वक़्त मैंने समय भी देखा. उस वक़्त रात का दो बज रहे थे. मुझे
रात और सुबह का पता ही नहीं चला. रात भर मैं कमरे के अंदर ही रहा. जब सुबह हुआ तो
किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. बाहर से आवाज आ रहा था अहमद दरवाजा खोलो
कितने देर तक सोते रहोगे. मैंने वो आवाज सुना वो आवाज मस्जिद के मौलाना साहब का
था. जो मस्जिद के इमाम हैं.
मैं दरवाजा खोल दिया. वो बोले की क्या बात हैं आज इतनी
देर तक सो रहे हो. मैंने उन्हे रात वाला बात बताया तो वो बोले की तुम्हें रात और
सुबह का पता नहीं चला. रात मे जब कभी ऐसा आवाज आए गलती से भी दरवाजा मत खोलना. रात
के समय जिन्न जिन्नात मस्जिद मे नमाज पढ़ने आते हैं. जिन्न जिन्नात की दुनिया भी
अजीब होता हैं. जब सभी कोई सो जाते हैं तो उनका काफिला निकलता हैं. रात मे जब नमाज
का समय होता हैं. तो नमाज पढ़ने के लिए रुक जाते हैं और नमाज पढ़ कर चले जाते हैं.
मुझ उस दिन यकीन आया की जिन्न जिन्नात का कोई दुनिया भी होता हैं. जो हमारे साथ
रहते तो जरूर हैं पर हमे नजर नहीं आते हैं. लेकिन उनका नजर हम पर बना रहता हैं. उस
दिन के बाद जब भी रात मे जागता हूँ तो समय जरूर देखता हूँ. अगर सुबह के अज़ान का
समय नहीं हुआ और मस्जिद के बाहर से आवाज़ आई.
तो चाहे जितना भी आवज़ आ जाए बाहर नहीं निकलता हूँ.