Chiti Aur Bandar , Hindi Kahani

Chiti Aur Bandar , Hindi Kahani.

Bal Katha


बहुत समय पहले की बात हैं। किसी जंगल मे एक आम का पेड़ था। उस आम के पेड़ मे चींटियों का समूह रहा करता था। चींटियाँ दिन भर खाने की तलाश मे आम के पेड़ पर घूमते रहती। उसी आम के पेड़ पर एक बंदरों का झुंड भी रहता था। जो दिन भर उधम चौकरी करता रहता।

 जंगल बहुत घना और हरा भरा था। बहुत से फलों के पेड़ होने के कारण खाने की कोई कमी नहीं थी। चींटिया भी दिन भर खाना की तलाश मे आम के पेड़ पर ही मंडराती रहती। जहां से भी खाने का सामान मिल जाता उठा कर अपने घर ले जाती। परंतु बंदर दिन भर आम के पेड़ पर उछल कूद करते रहते। कभी एक डाली से उछल कर दूसरी डाली। तो कभी एक पेड़ से उछल कर दूसरे पेड़। दिन भर अपने खेल मे व्यस्त रहते। अपनी ही मस्ती मस्त रहते। जितना जम कर आम खाये और फिर अपने खेल कूद मे लग गए। 

पर बेचारी चींटियों को कहा आराम था। वे सभी सुबह से शाम तक खाने की तलाश मे भटकती रहती। चींटियाँ बहुत ही मेहनती स्वभाव की होती हैं। उनको मेहनत करना पसंद हैं पर बंदर को उछल कूद करना ही अच्छा लगता हैं। जो खाने लायक मिला खा लिए और फिर से उछल कूद शुरू कर दिये। इन सभी चींटियों की मेहनत देख कर एक बंदर एक चींटी से बोला। 

क्या दोस्त दिन भर काम करते रहते हो। कभी तो आराम कर लिया करो। इतना काम करने से क्या मिलेगा। हमे देखो पेड़ मे कितने फल लगे हुए हैं जी भर खाया और खेलने लगे। पर तुम तो काम के अलावा खेल कूद पर ध्यान ही नहीं देती हो। इतना काम कर के क्या होगा। तो चींटी बोली की हम सभी दिन भर खाना की तलाश मे जुटे रहते हैं।

हम इतना खाना जमा कर के रख लेना चाहते हैं की जब जंगल मे खाने की कमी हो जाए तो भी हमारे पास खाना रहे। बंदर उस चींटी की बातें सुन कर कहता हैं। तुम्हारी तो तादाद भी बहुत हैं। तुम सभी कितना खाना इकठ्ठा कर के रखोगी की बहुत दिनो तक खाने की कमी महसूस नहीं होगी। चींटी फिर बोली की अगर थोड़ा थोड़ा कर के रोज जमा हो जाएगा तो एक दिन हमारे पास बहुत सारा खाना रहेगा।

 जिस से हम सभी बुरे वक़्त का भी सामना कर पाएंगे। उस चींटी की बातें बंदर को समझ मे नहीं आ रही थी उसने जवाब दिया। ज़िंदगी मौज मस्ती के लिए मिली हैं। इतना मेहनत कर के क्या होगा। तुम सभी भी हमारे साथ खेल कूद मे अपना समय लगाओ। ऐसी ज़िंदगी भी क्या ज़िंदगी जिस मे मौज मस्ती न हो। तो चींटी बोली की अभी तुम्हें मेरी बात समझ मे नहीं आएगी। तुम अपना समय खेल कूद मे बर्बाद करो हमे हमारा काम करने दो।

 हमे मेहनत पसंद हैं। उस चींटी की बातें सुनने के बाद वो बंदर फिर से अपने खेल कूद मे लग गए। कभी पेड़ के इस टहनी पर कूदता तो कभी उस टहनी पर। चींटियाँ दिन भर खाने की तलाश मे भटकती रहती। उन चींटियों की मेहनत देख कर बंदर सभी सोचते की ऐसी ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी हैं। वक़्त बीतता चला गया। आम का मौसम भी चला गया। बरसात नहीं होने के कारण पूरे जंगल मे सूखा छाने लगा। जंगल के पेड़ पौधे सूखने लगे।

 खाने की भाड़ी कमी चारो तरफ छा गई। जंगल के जानवर जंगल छोड़ कर जाने लगे। इधर बंदरों को भी खाना मिलना बंद हो गया। उनका भी हाल भूख से बेहाल होने लगा। एक दिन बंदरों ने आपस मे बैठक बुलाया और इस बात का निर्णय लिया गया की अब जंगल मे रहना मौत को गले लगाने के बराबर हैं। कही भी खाना मिल पाना बहुत मुस्किल हैं इसलिए जंगल छोड़ कर चले जाने मे ही भलाई हैं। सभी बंदर बहुत ही दुखी मन से जंगल छोडने के लिए राजी हुए।

 जब वे सभी जंगल से जा रहे थे तो उन्होने चींटियों से कहा की दोस्त तुम भी जंगल छोड़ कर चले जाओ। यहा पर रहना और भूखे मारना बात बराबर हैं। पर चींटी बोली की हम जंगल छोड़ कर नहीं जाएंगे हमारे पास इतना खाना हैं की हम सूखे का मुक़ाबला कर सकते हैं। बंदर चींटी से बोला की बड़े बड़े जानवर सूखे के कारण जंगल छोड़ कर जा रहे हैं और तुम छोटी सी चींटी सूखे का मुक़ाबला कर लोगी। तुम्हारी तादाद भी ज्यादा हैं।

 पर चींटियों जंगल छोडने के लिए राजी नहीं हुई। बंदर सभी भी जंगल से कही दूर खाने की तलाश मे निकाल गए। जंगल पूरा सुनसान हो गया। जीतने भी जानवर थे सभी जंगल छोड़ कर चले गए। सिर्फ चींटियों का समूह ही बचा हुआ था। बहुत दिनों के बाद फिर से बारिश हुआ और जंगल मे चारों तरफ हरियाली छा गई। फिर से आम के पेड़ मे मोझर लग गए और फिर से आम का समय आ गया। जीतने जानवर जंगल छोड़ कर गए थे.

 वे सभी फिर से वापस उस जंगल की तरफ आने लगे। बंदरों का झुंड भी उसी आम के पेड़ पर आ गया। जब वे सभी उस आम के पेड़ पर आ कर देखे तो तंग रह गए। चींटियों अब भी उसी आम के पेड़ पर थी। वो अब भी खाने की तलाश मे इधर उधर भटक रही थी। एक बंदर उन चींटियों से पूछा की जंगल मे बहुत ही भयानक सूखा पड़ा था।

 सभी जानवर जंगल छोड़ कर चले गए। पर तुम सभी अब भी यही हो और खाने की तलाश मे इधर उधर भटक रही हो। तो चींटी बोली मेरी माँ कहा करती थी की जंगल मे सूखा पड़ा हैं। हमने अपनी माँ से कहा की हमे नहीं पता की सूखा कैसा होता हैं। हम सभी तो रोज खाना खा रहे हैं। तो मेरी माँ बोली की मैंने इसी दिन के लिए खाना जमा कर के रख दी थी की मेरे आने वाले नस्ल को किसी भी तरह का कोई तकलीफ न हो।

 तुम भी अपने बच्चों के लिए इतना खाना जमा कर के रख देना की वे कभी न बोल पाये की मेरे माता पिता ने मेरे लिए कुछ नहीं किया। जब तक आज से ही कल की तैयारी नहीं करोगे तो कल का दिन भाड़ी पड सकता हैं। हम तो अपनी माँ की बातें मान कर कल की तैयारी कर रहे हैं ताकि कल हमे खाने की कमी महसूस न हो।

 जब फिर से सूखा छा जाएगा तो हमारे पास पर्याप्त मात्रा मे खाना रहेगा। जब उस बंदर ने चींटी की बात सुनी तो उसे सब समझ मे आ गया की ज़िंदगी सिर्फ खाने और खेलने के लिए नहीं होता हैं। बल्कि आज से ही कल की तैयारी कर लेनी चाहिए।